अरुण रघुवंशी, सचिव देवास जिला क्रिकेट संघ
किसी भी खेल विधा से हम जीवन प्रबंधन सीखते हैं क्योंकि खेल से खिलाड़ी अनुशासन, अनुशासित आचरण, सिद्धांत, विचार, ईमानदारी, समय प्रबंधन और विपरीत परिस्थितियों में हार न मानना और जीत के लिए अंतिम लक्ष्य तक संघर्ष करना सीखता है। वैचारिक दृढ़ता मिलती है, वही उसके जीवन जीने का आधार भी है। यदि देवास में खेलों के उन्नयन और बच्चों व उनके माता-पिता में इसके प्रति रुचि की बात करें तो देवास शहर के लोगों में खेलों के प्रति बढ़ते रुझान के कारण देवास इस क्षेत्र में भी तेजी से कदम बढ़ा रहा है। . की बढ़ती। बात सिर्फ क्रिकेट की ही नहीं है बल्कि आत्मरक्षा के लिए खेले जाने वाले खेल हों या एथलेटिक्स से जुड़े खेल, देवास के खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपने खेल कौशल का प्रदर्शन किया है। भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी में देवास का स्वर्ण काल था। देवास के खिलाड़ी जिस फुर्ती से हॉकी में गोल करते थे और मैदान में अपने खेल का प्रदर्शन करते थे, वह देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देता था, लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे हॉकी के प्रति खिलाड़ियों की रुचि कम होती चली गई और आज हम देखते हैं कि अब वह इसमें दखल नहीं दे रहे हैं। देवास की हॉकी। इस खेल में देवास के दखल न देने से उस जमाने के अग्रिम पंक्ति के हॉकी खिलाड़ी भी मायूस नजर आते हैं। इसी तरह बास्केटबॉल में भी देवास का बड़ा नाम था, राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रतिभाएं उभरीं, लेकिन वह टिकी नहीं। यह बात हम देवास वासियों के मन को जरूर कचोटती है।
लेकिन यह हमारे लिए उत्साह और खुशी की बात है कि क्रिकेट में 40 साल के बाद देवास के तीन बच्चों ने रणजी ट्रॉफी में जगह बनाई। देवास के अजय रोहरा ने अपने डेब्यू मैच में 267 रन बनाकर अमोल मजूमदार मुंबई का रिकॉर्ड तोड़ा। राकेश ठाकुर, शांतनु रघुवंशी ने भी रणजी में देवास का नाम ऊंचा किया है। लड़कियों के क्रिकेट में भी लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है। अब लोग अपनी बेटियों को भी क्रिकेट में प्रमोट करने की कोशिश कर रहे हैं। अन्य मंडल स्तर पर खेल रहे हैं। हमारे बच्चे क्रिकेट के अलावा सॉफ्ट टेनिस, बास्केट बॉल, डॉज बॉल, कराटे, ताइक्वांडो, बॉक्सिंग, स्विमिंग, बैडमिंटन, रनिंग, हाई जंप, लॉन्ग जंप, वॉलीबॉल जैसे खेलों में भी दक्ष हैं। इन खेलों में कई बच्चों ने देवास का नाम रोशन किया है। खेलों के लिए अच्छे मैदान, उनका रखरखाव, खिलाड़ियों के लिए संसाधन, खेल किट सहित अन्य सुविधाएं भी महंगी होती जा रही हैं। इसके लिए सरकार को गरीब प्रतिभावान खिलाडिय़ों के बारे में सोचना चाहिए ताकि अभाव के आगे प्रतिभाएं मर न जाएं और क्षेत्रीय व राष्ट्रीय मंच पर उभर कर सामने आएं। जब भी कोई खिलाड़ी या टीम सफलता के शिखर पर पहुंचती है तो यह उस शहर के लोगों के लिए भी एक बड़ी उपलब्धि होती है।
मेरे मन की स्मृति लेन
स्कूल नेशनल श्रीनगर में जूते और शर्त की मांग में खेला
बीएनपी ग्राउंड पर साल 1980 में कॉर्क और लेदर बॉल से खेलना शुरू किया। वहां हमने नेवरी की लोदरी नदी से पीली मिट्टी लाकर एक विकेट बनाया। उन दिनों मैटिनी विकेट हुआ करता था। टर्फ विकेट के उद्घाटन के लिए बीसीसीआई सचिव अनंत वागेश कनमाडिकर को बुलाया गया था। इस मैदान पर दस साल तक बच्चों को मुफ्त में खाना खिलाया जाता था। समर कैंप भी नि:शुल्क आयोजित किए गए। नरेंद्र हिरवानी ने भारतीय टीम में चुने जाने से पहले 1989 में इसी मैदान पर तीन दिवसीय मैच खेले थे। टूर्नामेंट खेलने के लिए हम अपने साथ लोडिंग वैन में मैटिनी लेकर जाते थे। 1979 में जब स्कूल ऑफ क्रिकेट नैशनल खेलने श्रीनगर गया तो दूसरे खिलाड़ी की मांग कर जूता और सट्टा छीन लिया गया। आज क्रिकेट बदल गया है।
के द्वारा प्रकाशित किया गया: नईदुनिया न्यूज नेटवर्क




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